Friday, March 20, 2015

EK KAVITA GUEST TEACHERS PAR BY Dr. Sulaxna Ji

Dr. Sulaxna Ji
हरियाणा के अतिथि अध्यापक की दर्द भरी कहानी

तुमसे हमें ये उम्मीद नहीं थी,
तुम भी दिल फरेब निकले।
कल तक मासूम लगते थे तुम्हें,
आज हम में हजारों ऐब निकले।

जिस माली ने इस बाग़ को लगाया,
वही माली वक़्त पर धोखा दे गया।
कोई भी आये और उजाड़ कर चल दे,
ऐसा वो दुनिया को मौका दे गया।

ऐ दोस्त! ना ही किसी ने समझा हमको,
ना ही किसी ने हमारे दर्द को जाना।

अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया,
बाद में कर दिया सभी ने हमको बेगाना।

कोई बनकर हमदर्द जख्म गहरा दे गया,
चंद सिक्कों के लिए बेईमानी कर गया।
सजाकर सप्तरंगी ख्वाब पलकों पर
हंसती आँखों में वो गम के आँसू भर गया।

फिर तुम पर भरोसा किया हमने,
और जिंदगी की डोर सौंप दी तुम्हारे हाथों में।
तुम्हें मसीहा मान लिया एक पल में,
सब कुछ दाँव पर लगा दिया आकर वादों में।

अब तो दो ही रास्ते बचें हैं मेरे पास,
या तो तुमसे लड़ जाऊँ या फिर मर जाऊँ।
मर गया तो लोग मुझे कायर कहेंगे,
हक के लिए लड़ कर मरा तो वीर कहलाऊँ।

अब तो इतिहास के पन्नों में अमर होना है,
लड़कर लड़ाई सच की हक अपना पा लेना है।
"सुलक्षणा" खोये मान सम्मान की लड़ाई है ये,
अब जोर अपने इरादों का यहाँ दिखा देना है।

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